Tuesday, April 26, 2016

मैं और तुम


एक तुम, जो हंसती गाती मुस्कुराती,
कभी रोती तो कभी आंसू बहती,
एक मैं, जो ना कभी बोला ना कभी गाया,
ना कभी हंसा ना मुस्कुराया ,
ना कभी खुश हुआ ना उदास,
बस खोया है अपनी ही किसी शांति में ॥

एक तुम जो शालीमार के बाग़ कि तरह ,
बदलती रंग हर मौसम के साथ ,
एक मैं, बरगत के पेड़ कि तरह,
जिसे ना पतझड़ का डर ना सावन कि ख़ुशी ॥

एक तुम जो निहारती रहती इंद्रधनुष को,
महसूस करती दुनिया के हर रंग को ,
एक मैं जिसके लिए सबकुछ पारदर्शी है ,
जैसे ये दुनिया हवा और पानी बस हो॥

एक तुम जो भागती रही वक़्त कि चादर तले,
मिलती मुसाफिरों से, रूकती सरायो पर,
एक मैं जो रुका रहता जड़ सा स्थिर,
और गुज़रता रहता वक़्त जिसके चारो तरफ से॥

मैं ये नहीं जानता के किसका सफ़र सही है ,
के किसके जीवन के मायने है ,
जानता हूँ तो बस इतना ही ,
के मंज़िल पर हम दोनों को मिलना है ॥


Monday, July 27, 2015

नज़रिया



आसमां  में बादल है, 
या गमो के साये है, 
ये उनकी याद है, 
या वो खुद ही चले आये है ॥ 
                                                                                                           
ये बारिश का पानी है , 
या मेरी आँखों के आंसू ,
दुश्मनो से दूर है , 
या अपनों को छोड़ आये है ॥ 

मुझे मिल गई है मंज़िल मेरी, 
या ज़िंदगी रुक सी गई है,
ये मेरा ही घर है, 
या सरायो के सरमाये है ॥ 

वो देते है मुझे रिश्वत , 
या प्यार से मिला तोहफा है, 
पहचानते है क्या हम खुद को , 
या आइने से धोखा खाए है ॥ 
                                     

Wednesday, April 9, 2014

खरीदार



मैंने खरीदा सोना उसने  सुई खरीद ली,
सपनो को बुनले ऐसी रुई खरीद ली ॥

मैं भागता रहा ज़माने भर कि ख्वाहिशो के पीछे,
उसने एक मुस्कराहट से सारी कायनात खरीद ली॥

जगता रहता मैं रात भर ख्वाबो कि तलाश में,
उसने लोरिया सुना कर नींदे खरीद ली॥

ज़माने भर से लड़ते - लड़ते थक जाता हूँ हार जाता हूँ,
उसने पीठ थपथपा कर उम्मीदें खरीद ली ॥

एक मैं, जो उलझा रहता है दिन रात के चक्कर में,
उसने नज़रे उठा कर दिन और झ़ुका कर शामें खरीद ली ॥ 

Friday, February 21, 2014

यादें ज़िंदगी कि




चाहेंगे तुम्हे हम उम्र भर,
ऐसा कोई वादा नहीं,
के भूल जायेंगे तुम्हे हम,
इसका भी कोई इरादा नहीं॥

दूर हो हमसे बहुत तुम,
याद भी तुमको करते है,
जी ना पाये तुम्हारे बिन,
इश्क़ इतना भी ज्यादा नहीं ॥

शमा को गुरुर है शमा होने का,
पतंगे को  फक्र है पतंगे  होने का,
जलना दोनों को है इस इश्क़ में,
कोई क्यों इन्हे ये समझाता नहीं ॥

जिया करते थे ख्बाबो में हम,
सोचते थे ख़ुशी बटोर लेंगे,
उगा करती थी जो हंसी पेड़ो पर,
लगा उस हंसी कि कालिया तोड़ लेंगे,
पर मुनासीब यहीं है कि इसे सच्चाई बता दी जाये,
हकीकत कि सारी कहानी सुना दी जाये,
पहले ये रोयेगा, चीखेगा, चिल्लायेगा,
पर वक़्त के साथ सब समझ जायेगा,
झूठ और फरेब अब इसे लुभाता नहीं ,
अब इस दिल को मैं और बहलाता नहीं ॥

Friday, February 14, 2014

दिल में उजाला





जरूरी नहीं चिरागो से ही उजाला हो,
दिल में उजाला ख्यालो से होता है ।।

                                                                    ना कर शिक़वा ज़िंदगी का ज़िंदगी से,
                                                                    सफ़र अधूरा मलालो से होता है॥

वो जान भी मांग ले तो हम हंस कर देदे,
डर तो हमें उनके सवालो से होता है॥

                                                                   जिन्हे मोड़ कर फेंक दिया करते है वो अक्सर,
                                                                   मेरे जस्बात उन्ही कागजी रुमालों में होता है ॥

Thursday, January 30, 2014

कशमकश




बहुत कुछ कहना है तुमसे,
और कुछ कहना भी नहीं,
उलझा रहता हूँ इसी उधेड़बुन में,
के ये इश्क़ है भी, या नहीं ॥

सोचता हूँ सबकुछ बतलाऊ तुम्हे ,
पर अक्सर खामोश रहता हूँ,
डरता हूँ इस बात से मैं,
के मेरी कशमकश तुम, समझोगे या नहीं ॥

कैसी इस मझधार में फंसा हूँ,
कैसी ये उलझन है मेरी,
कभी लगता है सबकुछ हो तुम,
कभी तुम्हारे कोई मायेने ही नहीं ॥

सोचा बैठे एक रात कोई,
पूछे खुद से सवाल कई,
अब कैसे पहुँचे किसी हल पर हम ,
ये पागल मन, कुछ समझता ही नहीं ॥

फिर घेरा  इस दिल को फिर से,
मैंने अगली रात,
कहा आज ना भागो तुम,
करनी है तुमसे दिल कि बात,
रोक लिया था नींद को मैंने,
लगाया ख्वाबो पर पहरा,
आज निकलेगा हल इस मसले का,
चाहे हो जाये सवेरा,
खूब कही उस रात मुझसे ,
दिल ने दिल कि बात,
मिला फैसला उस रात मुझे,
बताये उसने सारे जस्बात ,
पूछे उनसे दोस्ती के लिए,
इश्क़ का कोई मसला नहीं,
बहुत है  दोस्ती मेरे लिए,
दोस्ती से ज्यादा कुछ भी नहीं ॥



Monday, January 20, 2014

अनकही बातें



होते है वो कुछ दूरी पर ही मुझसे,
पर वो कुछ दूरी बहुत लम्बी सी दुरी लगती है,
नज़रे उठाऊ तो शायद उन्हें देख भी लू,
पर डरता हूँ कंही उन्हें तकता ही ना रह जाउ॥

सोचता हूँ उठ कर जाऊ उन तक,
करू कुछ बात दीनो दुनिया कि उनसे,
कुछ और नहीं तो बस इतना ही सही,
के नाम पूछ लेना तो लाज़मी सा होगा ॥

बातें  तो बस एक बहाना है,
जितनी बातें है उतने ही बहाने है,
हक़ीक़त में तो उन्हें तकता रहना चाहता हूँ,
डूब जाना चाहता हूँ उनकी आँखों कि झील में ॥

कुछ रोज़ हो गए है, वो नज़र नहीं आये है,
पुछा तो जाना कि वो जा चुके है यँहा से,
चलो कोई बात नहीं, बस इतनी सी दुआ है,
कोई और पूछ सके नाम उनसे उनका,
कोई और डूब सके उनकी आँखों कि झील में ॥