Thursday, June 28, 2007

कब आते हो.............


ना आने की टोह िमलती है ,
ना जाने की आहट होती है,
कब आते हो, कब जाते हो,


रात भर जागता रहा मै,
बैठा रहा दरवाज़े पर ही,
धूप भी चढ आई है मुन्डेर पर,
कब आते हो, कब जाते हो,


कल से बािरश हो रही है ,
देखता रहता हू रास्ते को ही,
नज़र भी नही आते कदमो के िनशान तक,
कब आते हो, कब जाते हो,


आगन मे धूप पसरी हुई है,
ढुढता रहा, खोजता रहा मै,
नही िमला कोई साया भी मुझको.
कब आते हो, कब जाते हो,


बैठा रहता हू कमरे मै तुम्हारे,
ताकता रहता हू तस्वीर तुम्हारी,
इन िदनो बहुत याद आते हो,
कब आते हो, कब जाते हो............

आज िफर चान्द


आज िफर चान्द की पेशानी से उठता है धुआ
आज िफर महकती रात मै जलना है


आज िफर सीने मै उलझी हुई सान्से है
कट के हर बार टूट ही जायेगी िबखर जाऎगी
आज िफर जागते गुज़रेगी तेरे ख्वाबो मे रात
आज िफर महकती रात मे जलना है


आज िफर खो गये है ख्वाब कही
ढुढने मे सारी रात बीत जायेगी
आज िफर तुमने नीद छुपा दी है
आज िफर महकती रात मे जलना है


आज िफर बािरश हो रही है बाहर
आज िफर चान्दनी के फूल उग आयेगे
आज िफर चान्द की पेशानी से उठता है धुआ
आज िफर महकती रात मे जलना ह

कभी कभी



कई बार कहा मैने उनसे
वो है के सुनते नही ,
सुन लेते है बात वो ि दल की
जो हमने उनसे कही नही,


राज़ कई िद्ल मे थे मेरे
ह्मनेे उनसे कुछ कहा नही
आखो ने सब कह दी बात
कहने को कुछ रहा नही


सबने पूछा हाल ह्मारा
बात पर उनसे हुई नही
िमलते ही पूछ िलया मुझसे
जागे हो या सोये नही


बात सभी कर ली उनसे
चुप भी है पर खामोश नही
कुछ ना बोले हम, कुछ ना बोले वो
ऎसी भी कोई बात नही