Sunday, August 29, 2010

तुने फिर से छु लिया


बड़ा वक़्त लगा कर सुलझाया था ,
तेरी यादो की गुत्थीयों को ,
तुने फिर से छु लिया ,
सारे धागे फिर से उलछ गए ||

सहला रहा था मैं दर्द अपने ,
लगा के वक़्त का मरहम ,
तुने फिर से छु लिया ,
मेरे सारे गम हरे हो गए ||

बड़ी मुश्किल से लौटी थी मेरे आँगन में चांदनी ,
बड़ी मुश्किल से गुज़रे थे यादो के बादल ,
तुने फिर से छु लिया ,
अब आंखो में सावन उमड़ आया है ||

फिर से नीद का दौर लौट आया था ,
फिर से नए ख्वाब बुनने लगा था ,
तुने फिर से छु लिया ,
अब ना आँखों में नीद है ना ख्वाबो के धागे ||

बड़ी मिन्नतो से तुझे भुलाया है ,
बड़े जतन से खुद को समझाया है ,
मत छु मुझे फिर से ओ ज़ाहिर ,
मेरे जीने के कुछ और भी मकसद है इस ज़माने में ||

Sunday, August 15, 2010

जीवन के चार पहिये




दिन भर दिन ने काम किया ,
घड़ी थी, रात से मिलने जाने की ,
सांझ का बालक लौट आया था ,
मांग थी अब कुछ खाने की ||

अँधेरे की दाल चड़ी थी ,
चाँद की रोटी बेली थी ,
सितारों की भाजी कटी ,
रात भी वो अलबेली थी ||

दोपहर की दीदी ने ,
दिन-भर सांझ को सताया था ,
रात को सर पर हाथ फेर कर ,
मिल बाट के खाना खाया था ||

ऐसे ही कुछ जीवन बिता ,
एक दूजे के प्यार में ,
चारो ने अपना कर्म निभाया ,
रहे सुखी संसार में ||

Saturday, August 14, 2010

अब तो कोई बात चले



सुने सूखे खतो को अब ,
शब्दों का आधार मिले ,
तोड़ दो इस ख़ामोशी को ,
अब तो कोई बात चले ||

किसी का खोया प्यार बुला लो ,
किसी का बदलता इश्क उठ लो ,
कोई भूली बिसरी दुर्घटना से ,
यादो के फिर फूल खिले |
तोड़ दो इस ख़ामोशी को ,
अब तो कोई बात चले ||

सुख गई है बातो की नदिया ,
एक रसता के आकाल में ,
खोदे हम इसतिहास को अपने ,
शब्दों का नलकूप मिले ,
तोड़ दो इस ख़ामोशी को ,
अब तो कोई बात चले ||

उड़ाले आसमान में गुबारे ,
बाद में चाहे वो खो जाये ,
पहले फैलाये अफवाहों को हम ,
फिर सच्चाई का दौर चले ,
तोड़ दो इस ख़ामोशी को ,
अब तो कोई बात चले ||

Friday, February 5, 2010

इस बार बहुत तन्हा सर्दी आई है


ठिठुरी सुखी नीद पड़ी है ,
रात की सर्दी छाई है ,
सपनो की कोई चादर दे दो ,
इस बार बहुत तन्हा सर्दी आई है ||

पुराने सूखे ख्वाब जोड़ कर ,
एक अँगीठी जलाई है ,
टूटे सूखे ख्वाब सुलग रहे है ,
मन ने कैसी आग लगाई है ,
अब तो कोई और दवा दो यारो ,
इस बार बहुत तन्हा सर्दी आई है ||

रात भर की बात सन्नाटो के संग ,
उफ़ ये कैसी ख़ामोशी छाई है ,
रूठे रूठे से ख्वाब पड़े है ,
कैसी ये रुसवाई है ,
अब तो सूरज की किरने फूटे ,
इस बार बहुत तन्हा सर्दी आई है ||
इस बार बहुत तन्हा सर्दी आई है ||