Wednesday, September 21, 2011

मैं यु ही तुमसे मिलता रहूँगा















कितनी जादूगरी सी है तेरी आवाज़ में , 
जता देती है तेरे मन का सारा हाल ये ||
कितनी कशिश है तेरी इस आवाज़ में , 
जता देती है सारे ख्वाव, ख्याल जस्बात ये ||
सुन कर तेरी हंसी, मेरे होटो पर भी मुस्कुराहट आ जाती है , 
तेरी सिसकिया, मेरी आँखों को भी नम कर देती है ||

कितनी माहिर कारीगर है आवाज़ तेरी , 
मेरी ज़हन में एक तस्वीर सी उकेर देती है ||
आंखे बंद करू तो तेरा चहरा नज़र आ जाता है , 
हाथ बड़ाउ तो शायद छु भी लू उसे ||
हजारो मीलो की दुरिया है ये शायद , 
पर शायद सबसे छोटी हजारो मीलो की दुरिया है || 

सुन सकता हूँ मैं आवाज़ उस हवा की , 
जो गुजरी है तेरी ज़ुल्फो से होकर , 
न जाने कैसे सफ़र कर लेती है वो मेरे घर तक, 
महसूस कर लेता हूँ तेरी ज़ुल्फो की खुशबु उनमे ||
छुता है जब भी कोई हवा का टुकड़ा मुजे , 
जाता देता है की वो तुज़े छु कर आया है || 

हमारे ख्याल है ये , हमारे ख्वाव है ये , 
ये रफ़्तार के मोहताज़ नहीं , ये दुरियो के गुलाम भी नहीं है ||
क्या हुआ जो यु तेरा मिलना मुजसे मुक्मल नहीं ,
तेरी आवाज़ से तो मुलाकात हो ही जाती है ||
तुम यु ही मुज़से बाते करते रहना, मुस्कुराते रहना , 
मैं यु ही सांस लेता रहूँगा, लिखता रहूँगा, तुमसे मिलता रहूँगा ||




Sunday, September 18, 2011

यादो को छोड़ कर

 

















सहलाया बहुत हमने ज्हख्मो को उन्हें याद करके , 
सोचते है क्या होगा उन्हें भुला कर, 
कोशिश तो बहुत की हमने , 
लौट जाया करते है वो दस्तक दे कर || 

कब तक सालते रहेंगे हम अपने आप को , 
जो उनसे कुछ कह ना सके ,
वापस नहीं आयेंगे अब , 
वो लम्हे लौट कर || 

पलट के देख लेते है जो कभी तस्वीर उनकी , 
तो सन्नाटे गूंजने लगते है , 
क्या मिला बैचेनी के सिवा , 
यादो का पिटारा खोल कर || 

रिश्ता तोड़ा भी ना जाये ,
रिश्ता बनाया भी ना जाये , 
जाऊ तो जाऊ कहाँ , 
अब मैं इन यादो को छोड़ कर || 




Friday, September 2, 2011

क्या रखा है हकीकत में जी कर

जीना सीखा है ख्बवो में रहकर हमने ,
क्या रखा है हकीकत में जी कर ,
खोजते रहते थे जिन्दगी का फलसफा हम भी ,
पाया भी जो उसको तो खुद को खोकर ||

बाटता रहता है जमाना खुशियों की जड़ी बूटी ,
पीना पड़ता है उसको भी गला घोटकर ,
कहते रहते है जमाने से की (मैं खुश हूँ),
क्या पाया है तुमने इतना खुश होकर ||

कुछ फायदा नहीं है उन्हें पुकारने से बार -बार ,
आते नहीं बिछड़े लम्हे वापस लौटकर ||
बस एक बार हकीकत ख्वाब सी लगी  थी मुजह्को,
जब गुज़रे थे वो हमको युही छुकर ||

इसलिए ही कहता हो यारो ख्वाबो मैं जी लो ,
क्या रखा है हकीकत में जी कर ||