Sunday, February 12, 2012

रात का सिपाही



एक तन्हा इंसान बैठा है , 
अकेली खाली रात मैं ,
ढूंढ़ रहा है मायेने इस अँधेरे के , 
चाँद में , तारो में , आकाश में ।।

आज की रात भी बड़ी सूनी सी है ,
न शोर है , न भीड़ है , ना कोई बात है ,
है तो बस ख़ामोशी , तन्हाई ,
और कुछ चमचमाते लेम्प पोस्ट ।।

इन लेम्प पोस्टो में रौशनी तो है ,
पर न जाने क्यों ये रात को और अँधेरा ही कर रहे है ,
जैसे इनकी रौशनी ही रात का खाना हो ,
जैसे इन्हें पाकर रात और भी ताकतवर हो गई हो ।।

रात की इस ताकत से कोई और लड़ने वाला भी तो नहीं है ,
बस कुछ ज्हिंगुरो का शोर है ,
और कुछ भोंकने की आवाज़े है ,
बस यही है जिन्होंने रात से लड़ने की ठानी है ।।

जिंदगी की रात से लड़ाई भी कितनी अजीब सी है , 
हमने लड़ने के सारे हथियार बनाये ,
पर हिम्मत नहीं जुटा पाये,
इसलिए हार मान कर सो जाते है ।।

हो सकता है ये हार हो ही नहीं ,
समझोता हो जिंदगी और रात के बीच ,
हम इसे एक तिहाई ज़िंदगी देते है ,
और बदले में ये कुछ ख्वाब दे जाती है ।।

क्या ख्वाबो का सौदा इतना महंगा है ,
चन्द ख्वाब और एक तिहाई ज़िंदगी,
शायद सौदा वाज़िव ही है ,
बिना ख्वाबो के उस एक तिहाई जिंदगी का मोल भी क्या है ।।

ख्वाबो का सिलसिला भी बड़ा अचरज भरा है,
हम ही ढालते है , हम ही पकाते है , हम ही रंग भरते है ,
कुछ टूट जाते है हमारी नासमझी की वजह से ,
कुछ संभाल के रखते है जिंदगी भर के लिए ।।

पर रात, अँधेरा, तन्हाई, ख्वाब, सब ढल ही जाते है,
सूरज का साम्राज्य ही कुछ ऐसा है,
उसके कुछ सिपाही मेरी खिडकियों पर खटखटाने भी लगे है,
कह रहे है की अब मैं जा सकता हूँ , यंहा से अब वो पहरा देंगे ।।