Monday, December 30, 2013

मैं और वक़्त



तकता रहता हूँ घड़ी को जब मैं,
ये वक़्त है की गुज़रता ही नहीं,
ये सुईया है जिनका बढ़ने का मन ही नहीं है,
सेकंड कि सुई भी कुछ धीमी सी गुज़रती है॥

जब नहीं देख रहा होता हूँ मैं इस घड़ी को,
यु भाग जाता है वक़्त जैसे कोई आंधी हो,
के पूरा पहर बस एक लम्हे में बीत गया,
जैसे चुकाया हो खामियाजा उस धीमे गुज़रे वक़्त का॥

जब भी होता हूँ मैं तन्हा, एक लम्हा आकर बैठ जाता है मेरे संग,
तकता रहता है वो मुझको या निहारता रहता है,
और मैं झांकता रहता हूँ ना जाने किस शून्य में,
घंटो, पहरो बस यूँ ही बीत जाते है और वो चला जाता है ,
और ज़िंदगी कि रेत से एक लम्हा घट जाता है,

जब होता हूँ मैं किसी इंसान के संग ,
हमसफ़र , हमराही या सफ़र का साथी,
या मैं कहु  दोस्त, साथी, मित्र या साझेदार,
ये यु भाग जाता है जैसे किसी रेस में अव्वल आना हो,
या चुरा कर नज़रे बच के जाना चाहता हो कंही दूर॥

बड़ा अजीब सा मिजाज़ है इस वक़्त का,
बड़ा अजीब सा नाता है इसका और मेरा,
के तन्हाई में बैठा रहता है संग मेरे निहारता रहता है मुज़को,
जब तन्हाई नहीं तो औरो से जलता है, नज़रे चुराता है, भाग जाता है,
कंही इस वक़्त को मुझसे इश्क तो नहीं ॥ 

Thursday, November 21, 2013

उनकी आँखों हम देखते रहे


उनकी आँखों हम देखते रहे,
हमें कुछ और नज़र आया नहीं,
दिल कि धड़कने हम गिनते रहे,
हमें कुछ और समझ आया नहीं ॥

उफ़ ये संगेमरमर सा तेरा ये बदन,
तराशा है तुज़े किस बारीकी से,
मान गया मैं उस खुद को आज,
जिसके सजदे में कभी सर झ़ुकाया नहीं ॥

जब निकलती हो तुम रात में,
आसमान कि चादर तारो से सजी होती है,
वो अक्खड़ चाँद भी शरमा जाता है,
जिसने अपने दागो को कभी छुपाया नहीं ॥

देखी है मैंने ये दुनिया सारी,
देखे है मैंने हुस्न बहुत,
लूट लिया तुमने उसको भी आज,
जिस जोगी ने कभी दिल लगाया नहीं॥ 

Sunday, November 17, 2013

कैसे इसको बतलाऊ मै॥

कितना झ़ुठ कहु मैं खुद से,
कितना खुद को समझाउ मैं,
टुटा है दिल, टुटा ही रहेगा,
कैसे इसको बतलाऊ मै॥

बताना चाहता हूँ सब कुछ मैं इसको,
और सब छुपाना चाहता भी हूँ,
कैसी मज़धार में फंसा हूँ मैं,
कैसे इस मुश्किल से पार पाऊ मैं॥

हसंता हूँ उनके सामने अब,
खुश हूँ, बताता भी हूँ , जताता भी हूँ,
आँखों के पीछे जो नमी छुपी है,
कैसे वो आंसू दिखलाऊ मैं ॥

कोलाहल में बैठा हूँ मैं,
फिर भी एक सन्नाटा है,
भीड़ भरे रास्तो पर भी,
कैसे तन्हाई से बच पाऊ मैं ॥

भटका मैं ये जग सारा,
पर्वत, जंगल, दश्त, मैदान,
जंहा गया वो संग थे मेरे,
कैसे उनको भुला पाउ मैं,
टुटा है दिल, टुटा ही रहेगा,
कैसे इसको बतलाऊ मै॥
कैसे इसको बतलाऊ मै॥ 

Saturday, May 25, 2013

छोटी मुलाकाते




वो सामने हमारे बैठे रहे,
हम यूँ ही उन्हें तकते रहे,
वो खामोश यूँ ही बैठे रहे,
हम यूँ ही उन्हें सुनते रहे॥

कुछ घुंघराले से बाल थे उनके,
कुछ खोई खोई सी आँखे थी,
वो खिड़कियो से झांकते रहे,
हम यूँ ही उन्हें तकते रहे॥

वो कंही और खोये हुए थे,
और हम उनमे खोये हुए थे,
अगर देख लेते वो एक निगाह हमें,
तो शायद जिंदगी से कोई शिकवा नहीं होता॥

कभी मोड़ कर कलाई अपनी,
वो देख लेते घड़ी को अपनी,
हम आंखे मूँद लेते अपनी,
सोचते के काश ये वक़्त यंही थम जाये॥

मेरा मक़ाम तो आ गया था,
पर मंजिल कंही और जा रही थी,
वो वक़्त की तहर गुज़र गये,
हम याद की तरह ठहर गये ॥ 

Thursday, February 14, 2013

हमको तुमसे प्यार नहीं




आँखों में तुमने काजल तो डाला,
पर नयनो में धार नहीं,
क्यों तुमको हम चाहे बोलो,
हमको तुमसे प्यार नहीं।।
हमको तुमसे प्यार नहीं।।

सोला आने हुस्न मिला है,
नखरा उस पर सवा दिया,
बोले तुमसे मुस्काये भी,
अपना तो व्यवहार यही,
क्यों तुमको हम चाहे बोलो,
हमको तुमसे प्यार नहीं।।

चटक मटक और ठुमठुम-ठुमठुम,
चाल है लेकिन अदा नहीं,
चेहरा देखे और मर जाये,
इतने भी बेगार नहीं,
क्यों तुमको हम चाहे बोलो,
हमको तुमसे प्यार नहीं।।


देखा तुमको पर जाना नहीं,
जाना तुमको पर माना नहीं,
करे कोई गुस्ताखी हम,
ऐसा कोई विचार नहीं,
क्यों तुमको हम चाहे बोलो,
हमको तुमसे प्यार नहीं।।

बात बात पर तुम रूठो,
और बात बात पर तुम्हे मनाये,
कब तक हम समझाये तुमको,
इतना तुमको अधिकार नहीं,
क्यों तुमको हम चाहे बोलो,
हमको तुमसे प्यार नहीं।।
क्यों तुमको हम चाहे बोलो,
हमको तुमसे प्यार नहीं।।







Thursday, February 7, 2013

तन्हाई है , तन्हाई है




तन्हाई है , तन्हाई है,
कैसी ये तन्हाई है,
अब तक साथ सभी थे मेरे,
अब तन्हा घड़ी छाई है,
तन्हाई है , तन्हाई है,

काली अंधेरी रात चडी है,
नींद से कैसी लड़ाई है,
अब तो खुद को थपकिया देते है,
अपने लिए ही लोरिया गाई है,
तन्हाई है , तन्हाई है,

छुकर देखा दुनिया को,
पर कोई अहसास नहीं,
रंग लगते है अब सारे फीके फीके,
मन को कैसी उदासी भाई है,
तन्हाई है , तन्हाई है,

जग ने सब कुछ कहा हमें,
जब साथ तुम्हारे होते थे,
दूर है तुमसे अब भी जग कहता है,
कैसी ये दुनिया हरजाई है,
तन्हाई है , तन्हाई है,

आँखों की झील सूख गई है,
अब ना इसमें ख़ुशी मोती,
और ना गम का पानी है,
भीगे थे कुछ पल पहले सब,
पर बरसात ना आई है,
तन्हाई है , तन्हाई है,

गीतों का था दौर जंहा पर,
अब सन्नाटा छाया है,
बजा करते थे ढोल ख़ुशी के,
वंहा दर्द की शहनाई है,
तन्हाई है , तन्हाई है,

खेत बागीचे सुने सुने,
झूले सारे उलझे उलझे,
ले आओ अब यार बहार तुम,
हर कली यंहा मुरझाई है,
तन्हाई है , तन्हाई है,

खाली हाथ हुआ करता था जब,
हँसी साथ थी तब भी मेरे,
पाया सब कुछ, खोया तुमको,
कैसी ये भरपाई है,
तन्हाई है , तन्हाई है,

लौट आये हो यार मेरे तुम,
अब सब सुख भी लौट आयेंगे,
अब न कोई शिकवा है हमको,
ना कोई तन्हाई है,
खुशिया आई है, खुशिया आई है।। 

Tuesday, January 22, 2013

The guy who never fell in love





He sees the world,
He knows the world,
He feels it, he talks to it,
He understands, when it is real and when it is not,
But this one thing he never understands,
Because he never fell in love

He reads about it
He writes about it
He sings songs about it
He sees people having it
But one thing he never had
Because he never fell in love

He doesn’t want anything anymore
But that doesn’t mean, he never asks for anything
He wants to love somebody
He wants somebody to break his heart
But he is afraid of his own desire
Because of that he never fell in love

Some call him mad
Some call him genius
Some say he never talks
Some say he won’t shut up
Some call him crazy
Some think he is a monk
But he is the one, the only one
He is the guy who never fell in love