Saturday, May 25, 2013

छोटी मुलाकाते




वो सामने हमारे बैठे रहे,
हम यूँ ही उन्हें तकते रहे,
वो खामोश यूँ ही बैठे रहे,
हम यूँ ही उन्हें सुनते रहे॥

कुछ घुंघराले से बाल थे उनके,
कुछ खोई खोई सी आँखे थी,
वो खिड़कियो से झांकते रहे,
हम यूँ ही उन्हें तकते रहे॥

वो कंही और खोये हुए थे,
और हम उनमे खोये हुए थे,
अगर देख लेते वो एक निगाह हमें,
तो शायद जिंदगी से कोई शिकवा नहीं होता॥

कभी मोड़ कर कलाई अपनी,
वो देख लेते घड़ी को अपनी,
हम आंखे मूँद लेते अपनी,
सोचते के काश ये वक़्त यंही थम जाये॥

मेरा मक़ाम तो आ गया था,
पर मंजिल कंही और जा रही थी,
वो वक़्त की तहर गुज़र गये,
हम याद की तरह ठहर गये ॥