उनकी आँखों हम देखते रहे,
हमें कुछ और नज़र आया नहीं,
दिल कि धड़कने हम गिनते रहे,
हमें कुछ और समझ आया नहीं ॥
उफ़ ये संगेमरमर सा तेरा ये बदन,
तराशा है तुज़े किस बारीकी से,
मान गया मैं उस खुद को आज,
जिसके सजदे में कभी सर झ़ुकाया नहीं ॥
जब निकलती हो तुम रात में,
आसमान कि चादर तारो से सजी होती है,
वो अक्खड़ चाँद भी शरमा जाता है,
जिसने अपने दागो को कभी छुपाया नहीं ॥
देखी है मैंने ये दुनिया सारी,
देखे है मैंने हुस्न बहुत,
लूट लिया तुमने उसको भी आज,
जिस जोगी ने कभी दिल लगाया नहीं॥