Thursday, November 21, 2013

उनकी आँखों हम देखते रहे


उनकी आँखों हम देखते रहे,
हमें कुछ और नज़र आया नहीं,
दिल कि धड़कने हम गिनते रहे,
हमें कुछ और समझ आया नहीं ॥

उफ़ ये संगेमरमर सा तेरा ये बदन,
तराशा है तुज़े किस बारीकी से,
मान गया मैं उस खुद को आज,
जिसके सजदे में कभी सर झ़ुकाया नहीं ॥

जब निकलती हो तुम रात में,
आसमान कि चादर तारो से सजी होती है,
वो अक्खड़ चाँद भी शरमा जाता है,
जिसने अपने दागो को कभी छुपाया नहीं ॥

देखी है मैंने ये दुनिया सारी,
देखे है मैंने हुस्न बहुत,
लूट लिया तुमने उसको भी आज,
जिस जोगी ने कभी दिल लगाया नहीं॥ 

Sunday, November 17, 2013

कैसे इसको बतलाऊ मै॥

कितना झ़ुठ कहु मैं खुद से,
कितना खुद को समझाउ मैं,
टुटा है दिल, टुटा ही रहेगा,
कैसे इसको बतलाऊ मै॥

बताना चाहता हूँ सब कुछ मैं इसको,
और सब छुपाना चाहता भी हूँ,
कैसी मज़धार में फंसा हूँ मैं,
कैसे इस मुश्किल से पार पाऊ मैं॥

हसंता हूँ उनके सामने अब,
खुश हूँ, बताता भी हूँ , जताता भी हूँ,
आँखों के पीछे जो नमी छुपी है,
कैसे वो आंसू दिखलाऊ मैं ॥

कोलाहल में बैठा हूँ मैं,
फिर भी एक सन्नाटा है,
भीड़ भरे रास्तो पर भी,
कैसे तन्हाई से बच पाऊ मैं ॥

भटका मैं ये जग सारा,
पर्वत, जंगल, दश्त, मैदान,
जंहा गया वो संग थे मेरे,
कैसे उनको भुला पाउ मैं,
टुटा है दिल, टुटा ही रहेगा,
कैसे इसको बतलाऊ मै॥
कैसे इसको बतलाऊ मै॥