तलाश है कुछ रोशनी की,
तलाश है कुछ तस्वीरों की,
हाथ में है तो बस कुछ उभरी हुई लकीरे,
इस दुनिया को महसूस किया है मैंने छुकर ।।
टटोलता रहता हूँ मैं अक्सर,
इस दुनिया को अपने हाथो से,
कभी बस की वो मुलायम सीट,
तो कभी बगल में लगे शीशे को,
कुछ तस्वीर सी तो बनाई है मैंने भी,
नहीं जानता कैसी होगी हकीकत में रहकर ।।
बड़ा सुकून सा मिलता है मुझको,
जब छुकर जाता है कोई मुलायम हवा का झोंका,
तो कभी कांप जाता हूँ मैं डर से,
सुनकर इस दुनिया का शोर,
गम, डर, खुशिया सब कुछ मिला है,
इस ज़माने को जाना है मैंने सुनकर ।।
बड़ी खुशी मिलती है उस वक़्त,
जब कोई पार कराता है सड़क हाथ पकड़कर,
तसल्ली हो जाती है इस मन को तब,
इस दुनिया में कुछ इंसानियत देख कर ।।
चलो अच्छा ही है जो ये दुनिया नज़र नहीं आती,
नहीं देखना पड़ता है 2 रंग के चहरो को,
बना लेता हूँ इसे वैसा ही,
जैसा मैं देखना चाहता हूँ,
हँसता हूँ, गाता हूँ,गुनगुनाता हूँ,
जीता हूँ मैं जिंदगी मुस्कुराकर ।।
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