Sunday, November 17, 2013

कैसे इसको बतलाऊ मै॥

कितना झ़ुठ कहु मैं खुद से,
कितना खुद को समझाउ मैं,
टुटा है दिल, टुटा ही रहेगा,
कैसे इसको बतलाऊ मै॥

बताना चाहता हूँ सब कुछ मैं इसको,
और सब छुपाना चाहता भी हूँ,
कैसी मज़धार में फंसा हूँ मैं,
कैसे इस मुश्किल से पार पाऊ मैं॥

हसंता हूँ उनके सामने अब,
खुश हूँ, बताता भी हूँ , जताता भी हूँ,
आँखों के पीछे जो नमी छुपी है,
कैसे वो आंसू दिखलाऊ मैं ॥

कोलाहल में बैठा हूँ मैं,
फिर भी एक सन्नाटा है,
भीड़ भरे रास्तो पर भी,
कैसे तन्हाई से बच पाऊ मैं ॥

भटका मैं ये जग सारा,
पर्वत, जंगल, दश्त, मैदान,
जंहा गया वो संग थे मेरे,
कैसे उनको भुला पाउ मैं,
टुटा है दिल, टुटा ही रहेगा,
कैसे इसको बतलाऊ मै॥
कैसे इसको बतलाऊ मै॥ 

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