दिन भर दिन ने काम किया ,
घड़ी थी, रात से मिलने जाने की ,
सांझ का बालक लौट आया था ,
मांग थी अब कुछ खाने की ||
अँधेरे की दाल चड़ी थी ,
चाँद की रोटी बेली थी ,
सितारों की भाजी कटी ,
रात भी वो अलबेली थी ||
दोपहर की दीदी ने ,
दिन-भर सांझ को सताया था ,
रात को सर पर हाथ फेर कर ,
मिल बाट के खाना खाया था ||
ऐसे ही कुछ जीवन बिता ,
एक दूजे के प्यार में ,
चारो ने अपना कर्म निभाया ,
रहे सुखी संसार में ||
4 comments:
sundar abhivyakti badhai
dhanyavaad sunil ji
बहुत उम्दा!
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल
When will you post again ? Been looking forward to this !
Post a Comment