
बड़ा वक़्त लगा कर सुलझाया था ,
तेरी यादो की गुत्थीयों को ,
तुने फिर से छु लिया ,
सारे धागे फिर से उलछ गए ||
सहला रहा था मैं दर्द अपने ,
लगा के वक़्त का मरहम ,
तुने फिर से छु लिया ,
मेरे सारे गम हरे हो गए ||
बड़ी मुश्किल से लौटी थी मेरे आँगन में चांदनी ,
बड़ी मुश्किल से गुज़रे थे यादो के बादल ,
तुने फिर से छु लिया ,
अब आंखो में सावन उमड़ आया है ||
फिर से नीद का दौर लौट आया था ,
फिर से नए ख्वाब बुनने लगा था ,
तुने फिर से छु लिया ,
अब ना आँखों में नीद है ना ख्वाबो के धागे ||
बड़ी मिन्नतो से तुझे भुलाया है ,
बड़े जतन से खुद को समझाया है ,
मत छु मुझे फिर से ओ ज़ाहिर ,
मेरे जीने के कुछ और भी मकसद है इस ज़माने में ||
2 comments:
बहुत खूबसूरती से लिखे हैं एहसास ....सुन्दर अभिव्यक्ति
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
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