Sunday, September 18, 2011

यादो को छोड़ कर

 

















सहलाया बहुत हमने ज्हख्मो को उन्हें याद करके , 
सोचते है क्या होगा उन्हें भुला कर, 
कोशिश तो बहुत की हमने , 
लौट जाया करते है वो दस्तक दे कर || 

कब तक सालते रहेंगे हम अपने आप को , 
जो उनसे कुछ कह ना सके ,
वापस नहीं आयेंगे अब , 
वो लम्हे लौट कर || 

पलट के देख लेते है जो कभी तस्वीर उनकी , 
तो सन्नाटे गूंजने लगते है , 
क्या मिला बैचेनी के सिवा , 
यादो का पिटारा खोल कर || 

रिश्ता तोड़ा भी ना जाये ,
रिश्ता बनाया भी ना जाये , 
जाऊ तो जाऊ कहाँ , 
अब मैं इन यादो को छोड़ कर || 




2 comments:

Dipesh Khandelwal said...

सलील सलोने सपने सी थी वो रात,
जब नजदीक आके बैठे थे वो हमारे,
हँस के दो चार मीठे बोल बोले थे हमसे,
और हम नादाँ उसे इश्क समझ बैठे ||

रात बीती भोर हुई, वो उठ के चल दिये,
पर हम नादाँ, आँखें मूंदे सोते रहे,
ख्वाबो में उनसे मिलते रहे,
सपने सलोने संजोते रहे ||

खुश हे वो अपनी दुनिया में आज कही,
याद हमारी शायद कभी आती भी नहीं ,
पर हम वक़्त का क़त्ल करते रहे,
इंतजार उनका हम नासमझ करते रहे||

इंतज़ार में दिन बीते, मौसम बदले
उनके आने की आँस में हम पलके बिछाय रखे
फिर खब्बर आई, उनके तो बच्चे हो गए

हम पे मानो पहाड़ टूट गया, चारो और काली घटायें छा गयी,
इन घनघोर घटाओं से फिर एक धवल छवि उभरी,
और कही ये आकाशवाणी हुई, अरे यादो में रखा क्या हे,
वो नहीं तो और सही, और नहीं तो और सही ||

और किसी ने सही कहा से बंधू प्रवीण
अगर इश्क से बड़ा कोई जख्म नहीं होता,
तो वक़्त से बड़ा कोई मलहम नहीं होता,
और यादों में खो कर कुछ हासिल नहीं होता ||

Unknown said...

shander .....